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Showing posts from January, 2018

प्रेम

रात आधी मैंने बितायी तारों को छूते हुए और तुम्हारे न होने पर भी तुम्हारी खुशबू को हौले से अपने भीतर महसूस करते हुए यह महज़ मेरे स्त्री और तुम्हारे पुरुष होने का सम्मोहन नहीं है यह एक अनुभूति है प्रेम से भीगी हुई उन सपनों के लिए जो मेरे अपने थे और कभी-कभी व्यक्ति से अधिक हम अपने ही सपनों से प्रेम करने लगते हैं।  

स्त्री होने का दर्द ....

एक अरसे तक मैंने कविता लिखना छोड़ दिया था क्यूंकि मैं लिख रही थी जीवन के पन्नों पर स्त्री होने का दर्द ....

रोज़ एक दिन गुजर जाता है

सुबह की चाय से लेकर रात के खाने की नखरा-नुकुर  तक रोज़ एक दिन गुज़र जाता है झाड़ - झटकार से लेकर सबकी जरूरतों का ख्याल रखने तक रोज़ एक दिन गुज़र जाता है न आकाश देखने की फुर्सत न चाँद निहारने की पाखाने से लेकर रसोईघर तक रोज़ एक दिन गुजर जाता है दिन कहाँ उगता है रात कहाँ सरक जाती है बुज़ुर्गों की डाँट से लेकर बच्चों की फटकार सुनने तक रोज़ एक दिन गुजर जाता है दिन महीने साल गुज़रते वक्त नहीं लगता जहाँ मन तक नहीं लगता था वहीँ पूरा जीवन लग जाता है रोज़ ... बस ! एक दिन गुजर जाता है