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Showing posts from July, 2010

2 mahine...

क्या कहू कुछ समझ नहीं आ रहा ... लगभग दो महीने से में लापता हूँ... इतनी गहरी चुप्पी ऐसे ही तो नहीं टूटती ... खैर! दो महीने घर पर आराम से रही ओर सबसे ख़ास बात की मैंने इतना कुछ नया पढ़ा , देखा , जाना की उसे कैसे बयान करू समझ ही नहीं आ रहा... कुछ नोवेल्स और अच्छी चीज़े पढ़ी (कभी मौका मिला तो लिस्ट के साथ अपने विचार भी व्यक्त करुँगी). खाना बनाने में अब परफेक्ट हो गयी हूँ (ऐसा मम्मी कहती है :) ) और ... कुछ लघु कथाये भी लिखी . कुल मिलकर दो महीने घर पर रहना सार्थक हुआ. अब वही दौड़ भाग और पढाई शुरू... ----  पहला दिन जयपुर में ---- कुछ अजीब सा लगा .. जैसे एक सपना हो... पहली रात ----- थोडा  अकेलापन लगा ... बेड भी थोडा सख्त था ... फिर भी नींद आ  गयी शायद बहुत थक गयी थी. आश्चर्य है , घर पर सबके रहते लगता था थोड़ी privacy चाहिए ... थोडा टाइम चाहिए ... खुद के लिए... और अब...पता नहीं इतनी याद घर की कभी नहीं आई...