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Showing posts from June, 2011

पता नहीं

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"कभी कभी फैसले लेना कितना मुश्किल हो जाता है न... खासकर जब दो चीज़ों में से एक को चुनना हो - एक गलत और दूसरा सिर्फ एक एहसास ... जो न सही लगता हो न गलत... बताओ न अगर तुम्हे चुनना हो तो तुम किसे चुनोगी?"  "मैं?... पता नहीं." "अरे... कुछ भी पूछो तो तुम्हारा एक ही जवाब होता है - पता नहीं."  मुस्कान जोरों से हंस दी. "मैं तो ठहरी एक बेवकूफ तुम्ही बता दो न." "उम्... मैं ?... अगर एहसास विश्वास पर टिका हो तो एहसास को चुनुँगा."  "और अगर विश्वास ठहरता न हो तो?" विशाल ने एक पल मुस्कान कि आँखों में झाँका , मानो कुछ अनकहा पढ़ लेना चाहता हो... मुस्कान उसी मासूमियत से उसे देखती रही. विशाल कुछ कीमती न ढूंढ़ पाने के कारण छटपटा रहा था ... मुस्कान ने आँखों से इशारा में ही पुछा कि क्या हुआ... तब विशाल धीरे धीरे सोचते हुए बोला - "विश्वास को दृढ बनाना एक चुनौती है , एक परीक्षा है और शायद इसी परीक्षा में सफल होने पर हमें वो मिल जाए जो हमें चाहिए." विशाल अभी भी प्रश्न भरी नज़रों से मुस्कान को टटोल रहा था... मुस्कान कुछ उलझी उलझी थी अचानक से

घुटन

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रौशनी और ताज़ा हवा के लिए हल्का सा खोला था  ये दिल का दरवाज़ा पर सच पूछो तो अब... पहले से भी ज्यादा  दम घुटता है . 
खिड़की के कांच से आती  पीली रौशनी में कमरे के खालीपन को  थकी आँखों से नापती रहती हूँ... जीवन निरुद्देश्य सा लगने लगा है. इसीलिए नहीं की किस्मत साथ नहीं,  पर अब वे दिन नहीं रहे जब प्यार के दो शब्द --- दिन की खुराक मिला करती थी.

विश्वास

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हर रात वही प्रश्न -  आँखों में आंसू , और ये ज़िन्दगी थमी हुई सी लगती है -  मैंने तो सिर्फ विश्वास ही किया था न.

बहुत कोशिश कि

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बहुत कोशिश कि  खोला करूँ शाम को खिड़कियाँ क्यूंकि सूरज कभी डूबता नहीं एक परछाई बनी रहूँ क्यूंकि साए कभी कुछ कहते नहीं वो लकीरें मिटा दूं तुम्हारे चेहरे से जो तुम्हारी नहीं ,और मेरी नहीं ओर वो तारे भी जो कभी सपने बन गए थे हमारी आँखों के