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Showing posts from February, 2010

mehndi wali baat ...

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कुछ दिन पहले  मेहँदी लगायी  बड़े डर के साथ. सुना था -  "जिसे मेहँदी नहीं रचती  उसे प्यार नहीं मिलता" में जानती थी  मुझे  मेहँदी नहीं रचती है ... रोज़ देखती हूँ  धीरे धीरे मेहँदी उतर रही है... हाथ घिस रहे हैं... कुछ  धब्बे से बनते जा रहे हैं उँगलियों पर  कुछ दिनों में मेहँदी  पूरी मिट जाएगी कोई निशाँ नहीं रह जायेगा न ही कोई डर फिर जी भर के दिल को बेहलाउंगी देखूंगी अपने  हाथ की ओर खुद को समझाउंगी  की तुम हो न मेरे लिए मुझे प्यार करने के लिए.... मेरा साथ देने के लिए... हो न तुम ??? तुम हो न!  ये कहने के लिए की ये मेहँदी वाली बात एक झूठ  है...

तनहा सफ़र में रात के तारे

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जब भी रात के सफ़र में होती हूँ कुछ पंक्तियाँ बन ही जाती हैं... अभी जब में अपने घर से जयपुर आई तो  तारो भरी रात को देख कर ये पंक्तियाँ दिल में उतर गयी जिन्हें मैंने अपने मोबाइल में सेव कर लिया था --- काली चुनरी में जड़े हुए हीरे से लगे  मुझको ये रात के तारे  रात भर  बैठी  गिनती  रही  क्यूंकि जानती हूँ कटता नहीं ये तनहा सफ़र यूँही एक तारे से दुसरे तारे के बीच सपनो के जाल बुनती रही  क्यूंकि जानती हूँ सपनो के बूते भी जी जा सकती है एक लम्बी उम्र .

ढाई किलो की रजाई

हालांकि मुझे अक्सर चीज़ों से प्यार हो जाता है - अपनी चीज़ों से , और फिर उनसे एक रिश्ता सा जुड़ जाता है पर वो ढाई किलो की रजाई तो में दीदी के लिए लेकर आई थी , उससे भला मेरा क्या रिश्ता? पर कोई रिश्ता तो था और इसीलिए उसे में कभी भुला नहीं पाउंगी. वो जनवरी के पंद्रह दिन - हाथ का असहनीय दर्द - और ढाई किलो की रजाई. अब शायद आप समझ गए की मेरे और रजाई के बीच क्या रिश्ता होगा... नहीं समझे? :)  बहुत ही दर्द दिया है  इस रजाई ने मुझे ... पर में क्या कम बेवकूफ थी? दूकान से घर तक वो ढाई किलो की रजाई कंधे पर लाद कर लायी हालांकि इस किस्से से वाकिफ सभी लोगों ने मुझे "कंजूस" समझा - पर में अपने रोमांटिक वर्ल्ड में खोयी हुई थी ... एहसास ही नहीं हुआ इस बात का की ढाई किलो की रजाई उठाने का क्या हश्र हो सकता है . में कभी उन मजदूरों के बारे में सोचती जो दिन भर अपने शरीर पर बोझा  ढोते हैं ... तो कभी उन औरतो के बारे में  जो सुबह चार बजे पनघट पर पानी भरने जाती हैं और बड़े बड़े घड़े सर पर उठा कर लाती है . पर एक दिन बाद जब ढाई किलो की रजाई उठाने की वजह से मेरे हाथ में बहुत ज़ोरों का दर्द उठा - तो मे