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Showing posts from October, 2012

मृत्युंजय - एक चरित्र, अनंत कहानी

कर्ण ! अब ये मेरे लिए एक नाम या महाभारत का एक चरित्र मात्र  नहीं रह गया है।  आज मृत्युंजय  उपन्यास पूरा हुआ। किसी भी कार्य के शुरू होने से उसके पुरे होने की भी एक कहानी होती है। लेकिन आज वह नहीं। यूँ तो विचारों के कई बुलबुले जैसे  कई दिशाओं में फेल गए हैं , लेकिन मैं मात्र एक को लेकर चलूंगी। अब , आखिर, अब भटकना उचित नहीं।  पांच पांडव या कर्ण  - इनमे से कौन श्रेष्ठ है? ये सवाल नहीं, ये विचारों का जाल है। श्रेष्ठता को सिद्ध करना इतना आसान नहीं और वो करने वाली मैं कुछ भी नहीं - - - लेकिन - - - कर्ण श्रेष्ठ है--- और अगर है तो उसकी श्रेष्ठता का कारण क्या है - - -  कर्ण का जीवन भयंकर संघर्षमय रहा और यह उपन्यास शत-प्रतिशत उसके संघर्षों को प्रकट करने में सफल रहा है। कर्ण की श्रेष्ठता के कुछ बिंदु जग-जाहिर हैं -वह महा-पराक्रमी , महावीर, अर्जुन से भी कुशल योद्धा था, उसकी ख्याति दिग्विजय कर्ण की जगह दान-वीर कर्ण के कारन हुई, लेकिन इससे भी श्रेष्ठ गुणों से वह युक्त वीर था - वह था - स्थिर बुद्धि, वचन-बद्धता। इसे ही कृष्ण ने आदर्शवादिता कहा है और इसीलिए उन्होंने कर्ण की जगह पांच पांडव को

अध्-पके विचार - मृत्युंजय (शिवाजी सावंत)

मेरा मन अभी कितने भावों का क्रीडा-स्थल बना हुआ है, मैं बता नहीं सकती। एक लम्बी यात्रा से जब घर पहुंची तो इस बात का अंदाजा भी नहीं था की मम्मी  ने मेरे लिए 'मृत्युंजय' लाकर रखी होगी . न जाने कबसे इस पुस्तक को पढने की हार्दिक इच्छा मन में थी।दो-तीन दिन ही हुए हैं किताब शुरू किये हुए, लेकिन मन में न जाने कितने विचार आ गए।  विचारों की तो छोडिये, न जाने कितने भाव जो किरदारों ने महसूस किये वो मेरे मनचले मन ने भी कर डाले। मृत्युंजय , महशूर मराठी उपन्यासकार , शिवाजी सावंत द्वारा लिखित एक बेहद लोकप्रिय उपन्यास है। महाभारत की इस व्याख्या का मुख्या किरदार, वो भूला हुआ सूर्य-पुत्र , ज्येष्ठ पांडव कर्ण  है, जिसका जीवन स्वयम में जीवन की एक श्रेष्ठ पाठशाला है। महाभारत को साधारण दृष्टि से देखने पर यह मात्र एक अट्ठारह दिवसीय धर्म-युद्ध हो सकता है परन्तु अन्य महा-काव्यों की भाँती यह भी मानव और नियति सम्बन्धी कई गुत्थियों पर प्रकाश डालता है। यूँ तो अब तक की कहानी पढ़ कर मन में कई विचार चक्कर लगाते  रहते हैं परन्तु एक विचार जो दिल मैं पैठ सा गया है वह यह की - जब सूर्य-पुत्र , पराक्रमी  योद्धा