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अपने अपने अजनबी - अज्ञेय

अज्ञेय निसंदेह पिछली सदी के महानतम रचनाकारों में से एक हैं।  उनके चिंतन की गहराई इतनी है कि कई बार प्रबुद्ध सुधि पाठक भी उस स्तर को छु नहीं पाता।  उनका रचना संसार इतना वृहद् है और सभी विधाओं में उनकी इतनी  पकड़ है कि  ये कहना मुश्किल है कि  वे श्रेष्ठ कवि थे या उपन्यासकार या निबन्ध लेखक या यात्रा - वृत्तान्त लेखक। उनके तीन उपन्यासों में से मैंने बहुत पहले शेखर एक जीवनी के दोनों भाग पढ लेने के बाद , हाल ही में   अपने अपने अजनबी  को पढ़ा, जो कि निश्चित ही चिंतन की कसौटी पर रख कर आपको चुनौती देता   है. और आप  … चिंतन के ही मृग्जाल में खो जाते हैं  …  यह छोटा सा दिखने वाला उपन्यास , जीवन के तीन सबसे बड़े पहलुओं को समेटे हुए है - मृत्यु  ( नहीं मृत्यु तो जीवन के बाद आनी चाहिए - - - इसका मतलब चार पहलु हुए? - - - लेकिन जीवन और मृत्यु दो  भिन्न पहलु कहाँ हैं ?) अतः - जीवन-मृत्यु , स्वतंत्रता-मुक्ति और काल. इन तीनो ही विषयों पर अज्ञेय जी ने बड़ी सूक्ष्मता से विचार किया है. उपन्यास में दो ही मुख्य चरित्र हैं -   योके  , एक जवान लड़की जो बर्फ में घुमने के  लिए जाती है और स्वयं को  सेल्मा