हम
चाहते थे तुम मुक्त हो उड़ सकूँ छू सकूँ उचाइयां इस आसमां की . धीरे - धीरे मैंने सीख लिया है उड़ना , मुक्त हो भाव , कर्म , आकांक्षा और प्रशंसा के अद्रश्य बन्धनों से, और डूबना भी , शुन्य की उस गहराई में , जहां 'मैं' के भीतर 'हम' है.