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Showing posts from April, 2018

शादी के बाद

तुमने काट दिए दो पैर और कहा, "ऐसे गिर-गिर कर क्या चलोगी छोड़ दो। .. घर बैठे रहो। ... " तुमने रख लिए गिरवी दो हाथ और कहा, " क्या करोगी बिना  हाथ के जाने दो.... घर बैठे रहो। ... " तुमने खींच ली जबान और समझाया, "कौन सुनेगा अब तुम्हारी मेरे सिवा...  घर बैठे रहो। ... " फिर तुमने ब्रेनलेस साबित कर ऐलान कर दिया "कुछ करने योग्य नहीं हो भूल जाओ। ... घर बैठे रहो। ... " एक गोल्डमेडलिस्ट को बड़े आहिस्ते-से ड्राइंगरूम की चमक-धमक में कांच के शो-केस में बंद कर तुम बड़ी तहज़ीब-से मेहमानों से कहते हो, "हम अपनी बेटी को बहुत पढ़ाएंगे, वेस्ट नहीं होने देंगे इसका टेलेंट घर-में । " और मैं तुम्हारी बातों पर न हंस पाती हूँ न रो पाती हूँ।     

भूख

बाहर से निरिक्षण  करने आये साहब ने चौथी कक्षा के विदयार्थियों के सामने रखे मिड-डे मील के खाने की जाँच की। पत्थर जैसी रोटी और पानी जैसी दाल देखकर साहब गुस्से से तमतमा गए। विद्यालय के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए उन्होंने पुछा, "क्या तुम ऐसा खाना खा सकते हो? इन मासूम बच्चों को ऐसा खाना खिलाते तुम्हें शर्म नहीं आती? "जब साहब का गुस्सा इतने से शांत नहीं हुआ तब उन्होंने पत्थर जैसी रोटियां बच्चों को दिखाकर पुछा, "क्या रोज़ ऐसी ही रोटियां मिलती हैं?"  बच्चे मूक दृष्टि से एक-टक साहब को देखते रहे।  साहब ने फिर अनिश्चित भाव से अपने साथी से कहा , "आखिर कैसे खा लेते हैं बच्चे ऐसा खाना?" इतने में ही एक बच्चा दौड़ कर आया और साहब के हाथ से रोटी छीन ली।  साहब फिर कुछ बोलते इससे पहले बच्चा बोल पड़ा, "भूख लगी है साहेब ...  खाने दो ना। "