गुनाह
कुछ मासूम से गुनाह मैं आज कबूल करती हूं तुमसे बातें की मैंने बिना तौल औ' बेतुकी जैसे तुम हो ही न वहां मैं खुद से ही करती थी बातें तुमसे सपने किए साझा और सोचा नहीं कि सपने तो किसी की सबसे कीमती चीज होते हैं तुमसे बांटा दुख तुम्हारे कंधे पर आंसू ढलकाए क्या पता था कि ये एक मोम का तुम्हारे सीने पर धीरे-धीरे पिघलना था और सच कहूं तो जब तुम्हारा सरल प्रेम स्वीकार किया ये मेरे लिए उतना ही सहज था जितना ब्रह्मांड का अपनी गति से चलना... ये मेरे कुछ मासूम से गुनाह हैं जिन्हें मैं आज कबूल करती हूं