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Showing posts from August, 2010

3.) अनुवाद

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3.) अनुवाद मृत ज़मीन की रुखाई के मध्य, एक फूल की ख़ामोशी ; इतनी मासूम और गंभीर, कि अब वो ख़ामोशी उसकी अमर कहानी बन गयी है .

२.) अनुवाद

  २.)  अनुवाद   तुम्हारे कदमो के निशाँ, मेरे दोस्त ! मिटाए जा चुके हैं, "किसके द्वारा?" तुम्हे नहीं पता? ओह बेचारा इंसान ! जिसे ये नहीं पता उसकी गलती क्या है, रुको ! भागो मत! भूल धुंध कि तरह हर कहीं फैली है , इसीलिए आखिरी फैसले से पहले, इस धुंध को साफ़ होने दो.

अनुवाद

स्वयं कि अंग्रेजी कविताओं का अनुवाद करने का मन हुआ... अनुवाद में वैसे भी रूचि है और हाल ही कुछ दिनों से कई छोटी अंग्रेजी कविताएं लिखी तो सोचा पहले इन्ही का अनुवाद करके देखा जाए... तो कुछ अनुवाद श्रंखला से --- १.) मेरे मित्र ! तुम कहते कुछ हो और  करते कुछ और, और तुम पढ़ाते हो कबीर , यह एक शर्मनाक बात है, ओह! शिकायत करना बेकार है, यह संसार है. अद्भुत और अजीब  ! नकली चेहरों  से घिरा, और अविश्वास से भरा.

श्रेया...

" मिसेज मेहता , आइरिस ने अपनी सफलता का श्रेय आपकी परवरिश को दिया है , इस बारे में आप कुछ कहना चाहेंगी ? " मुक्त हंसी के साथ श्रेया मेहता पत्रकार को जवाब में कहने लगी  , " अच्छा! तो अब वो इतनी समझदार भी हो गयी है ..." पत्रकार जैसे कुछ समझ न पायी हो , ऐसा एक्सप्रेशन देती है , तो श्रेया फिर कहने लगी  ...पर  अबकी बार थोड़ी गंभीरता भरे स्वर में .. " हाँ.. कभी कभी मुझे भी लगता है...  शादी से पहले में इतनी रिबेलिअस थी ...पर कुछ न कर सकी ... यहाँ तक कि शादी भी खुद कि मर्ज़ी से नहीं कर सकी.. और फिर एक लम्बी लिस्ट है कि मैं क्या क्या नहीं कर सकी और किस वजह से...तभी से मैंने यह तय किया कि मेरे साथ जो होना था वो हो गया लेकिन अपने बच्चो को मैं ऐसी परवरिश दूंगी कि .... कि कल को उन्हें ये न लगे कि वो अपनी नहीं किसी और कि ज़िन्दगी ढो रहे हैं... मैं चाहती थी कि मेरे बच्चे ज़िन्दगी जिए... ओर वो भी खुद कि बनायी हुई..." पत्रकार अभी भी संतुष्ट नहीं दिखी , फिर जोर देकर बोली , " पर ऐसा क्या ख़ास सिखाया आपने अपने बच्चो को? "  फिर से मुक्त  हंसी कि लहर हवा में समां गयी

उफ़!!... तुम भी न.

तुम जानते हो? तुम्हे कितना मिस किया ? हाँ... आई नो ! तुम बोलोगे - मुझसे ज्यादा नहीं . शायद ये सच भी हो... पर क्या फर्क पड़ता है ... मिस करने के  अलावा भी बहुत कुछ किया ... यु   नो ... बहुत कुछ फील कर रही हु... ....................................................... "क्या?" अभी बताया तो... "उफ़... तुम भी न..." और  मैं खिलखिलाकर हंस दी ... *--------------*----------------* उन्होंने पुछा  क्या किया इतने दिन?  मैंने कहा - आप  मेरी ज़िन्दगी में नहीं रहोगे तब ये ज़िन्दगी कैसे होगी , यही देखा... अच्छा तो कैसी होगी...? पता नहीं... पर जब आप रहते हो वैसे तो नहीं होगी... "उफ़... !!! तुम भी न..." और मैं खिलखिलाकर हंस दी ... *--------------*---------------* तुम सच में चाहती हो मैं किसी ओर से शादी कर लू? ...... हाँ ..... सच? हाँ... और तुम क्या करोगी उसके बाद? मैं भी किसी से शादी कर लुंगी. एक बात कहू? कभी कभी मुझे लगता है तुम मुझे उतना प्यार नहीं करती जितना मैं तुम्हे करता हु. हम्म... क्या ? हम्म....?? कुछ नहीं.... उफ़... तुम भी  न... !