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Showing posts from November, 2014

कुछ पंक्तियाँ

ग्यानी अपनी आँखें खोलो इस माया जाल से मुक्त हो लो जिसने जो कहा वो उसी के पास रह जाना है शब्द भ्रहमाडं में घूमते रहने हैं और हर शब्द के साथ एक कहानी स्वयं को कहानियों से मुक्त कर लो बंधनों से छूट जाओ बंधनों को छोड़ दो ग्यानी अपनी आँखें खोलो

आकांक्षा

देखो , मेरी बातों का कुछ मतलबल मत समझना मैं किसी के द्वारा समझे जाना नहीं चाहती हाँ मैं अनन्त में खो जाना चाहती हूँ जैसे कोई छोटा - सा तारा  अपनी मस्ती में ही घुमा करता हो कार्य-कारण के बंधन से मुक्त होने-ना होने की सीमा से परे  …