हम

चाहते थे तुम 
मुक्त हो 
उड़ सकूँ 
छू सकूँ 
उचाइयां इस आसमां की .

धीरे - धीरे मैंने सीख लिया है  
उड़ना , 
मुक्त हो 
भाव , कर्म , 
आकांक्षा और प्रशंसा 
के अद्रश्य बन्धनों से,

और डूबना भी , 
शुन्य की उस गहराई में , 
जहां 'मैं'  के भीतर 
'हम' है.

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