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अन्या से अनन्या

प्रभा जी का सिर्फ एक उपन्यास पढ़ा था और लगा की इनकी आवाज़ मेरी आवाज़ से मिलती  है।  वो भी मारवाड़ी समाज , रीति -रिवाज़ों , और महिलाओं की स्थिति के बारे में लिखतीं हैं और मैं भी संस्कृति और महिलाओं के बारे में विचार करती हूँ। इन पर पी.एच डी करने में तो मज़ा आएगा। लेकिन प्रभा खेतान जी की आत्मकथा (अन्या से अनन्या ) पढ़कर  बेहद झटका लगा।  एक ऐसी छवि के साथ मेरा नाम हमेशा  लिए जुड़ जायेगा मैंने सपने में भी नहीं सोचा था।  ऐसा सुना था कि  प्रभा खेतान की आत्मकथा बहुत बोल्ड है।  लेकिन उनकी आत्मकथा पढ़ कर मुझे कहीं भी ये नहीं लगा कि 'कुछ ज्यादा' कहा  गया है बल्कि यही लगा कि 'ज्यादा को सीमित  ' करके कहा गया है। मैं जिन पर शोध करने जा रही हूँ वह एक ऐसी महिला हैं जिनका व्यक्तिगत जीवन उहापोह और लीक से हटकर रहा है।  मारवाड़ी समाज की यह महिला बंगाल में न केवल उच्च शिक्षा प्राप्त करती हैं बल्कि विवाह संस्था को ठुकरा कर अपने से 18 वर्ष बड़े विवाहित और पांच बच्चों के पिता से प्रेम कर बैठती हैं।   ज़िन्दगी उन्हें समर्पित कर  देती हैं।  चूँकि वह उस व्यक्ति पर आर्थिक रूप से निर्भर नहीं रहना चा

इल्ज़ाम

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इल्ज़ाम  "तू गन्दी है, गन्दी है, बहुत गन्दी है। " बड़ी चिल्ला रही थी। "मैं ? मैंने क्या किया ? " छोटी ने सहम कर पुछा। "तूने मुझे धोखा दिया है धोखा। "बड़ी ने गुस्से में तमतमा कर कहा। छोटी ने आश्चर्य में पुछा , "कैसा धोखा ?" "तूने मेरी बात अपनी सहेली को बता दी।  " "पर  .... इसमें धोखे वाली क्या बात है वो बात तो  … " "मेरी बात क्यों बताई ? तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।  "  … कुछ गलतियां बार बार हो जाती हैं और कुछ इल्ज़ाम ज़िन्दगी भर के लिए माथे पर छप जाते हैं।  छोटी के साथ ऐसा ही हुआ।  बड़ी ने एक न सुनी।  उसने बस इतना भर कहना चाहा था कि  - दुनिया  में कोई बात किसी से नहीं छिपती और  इतना ही था तो तुम मुझे भी नहीं बताती।  छिपाने का इतना आग्रह क्यों ? जो तुम हो उसे स्वीकार कर लो।  तुम स्वीकार क्यों नहीं करती ? लेकिन बड़ी जा चुकी थी अपनी दुनिया में जहाँ हर सवाल हर जवाब से दूर वह अपनी ही सोच में सुरक्षित रह सके। via: Google images