निज भाषा का प्रेम
मन में कई विचार दौड़ रहे हैं ... पढ़ रही हूँ इंग्लिश पर विचार हिंदी भाषा को लेकर हैं. क्या हिंदी केवल भाषा है? यही सवाल में इंग्लिश के लिए भी पूछ सकती थी , पर जवाब में तभी दे पाती जब इंग्लिश बोलने वाले देश में रहती. भाषा हमारी संस्कृति से सीधा सम्बन्ध रखती है. किसी भी देश की आत्मा को समझना हो तो उस देश के साहित्य को पढना चाहिए. हिंदी हमारी केवल भाषा नहीं है. कई देशो में हो सकता है की उस देश की भाषा , भाषा से अधिक कोई महत्व न रखती हो , पर हमारे लिए निश्चित रूप से हिंदी का अनूठा स्थान है. मुझे कभी कभी ऐसा लगता है की , ये हमारी गलत धारणा है की हम चीजों को चुनते हैं , सही मायने में चीज़े हमें चुनती है. कहा जाता है , भगवान् जब तक न बुलाये , हम उस मंदिर जा ही नहीं पाते. ठीक उसी तरह , हम चीजों को जितना प्यार देंगे वो हमारी बनकर रहेंगे. हिंदी को हमने बहुत प्यार दिया है , इसे राष्ट्र भाषा बनाने में क्या कसार नहीं छोड़ी , ओर आज तक भी अंग्रेजी के प्रकोप से इसे बचाने के लिए हम इसे अपने गले से लगाए हुए हैं. ये हमारा प्यार है हमारी भाषा के प्रति. ओर देखिये ये हिंदी हमारा प्यार हमें कैसे लौटा...