भाषा का द्वंद्व

 परीक्षा शुरू होने में मात्र अट्ठारह दिन शेष हैं. चिंता स्वाभाविक है. पर बैचैनी ओर भी बहुत चीजों की वजह से है . में अंग्रेजी साहित्य की विद्यार्थी हूँ. यह मेरा हमेशा से प्रिय विषय है. पर साथ ही हिंदी साहित्य भी मुझे बेहद पसंद है शायद इसका श्रेय मेरी मम्मी को जाता है जो की हिंदी साहित्य की लेक्चरार है या फिर मेरी रूचि को जिसकी वजह से मैंने दोनों साहित्य  ब. ए तक पढ़े. 


परन्तु अब लगता है बहुत बड़ी गलती की दोनों साथ पढ़कर . एक द्वंद्व सा छा गया है जीवन में. जब कॉलेज में थी तब इंग्लिश की क्लास के बाद इंग्लिश ही बोलती थी , इंग्लिश में ही सोचती थी , ब्रिटेन की दुनिया में खोयी रहती थी , ओर जब हिंदी की क्लास से निकलती , मन में पन्त की , तुलसी दास की पंक्तियाँ घुमती थी .  


दोनों साहित्य पढने से एक अच्छी बात यह हुई की मुझे यह समझ में आया की चाहे वह भारत हो या विदेश ,  मानव मूल्य , उनकी भावनाए सब जगह लगभग एक सी हैं. दोनों साहित्य को  साथ में पढने से एक दुसरे से अच्छे से सम्बंधित कर पायी. एक ओर बात जो मैंने गौर की वह ये की दोनों साहित्य की धारयिएन साथ ही बही या एक का प्रभाव दुसरे पर पढ़ा. जैसे की अमेरिका एवं ब्रिटेन में जब existentialism की लहर आई तो उसका प्रभाव भारत पर पड़ा ओर यहाँ के साहित्य में अस्तित्ववाद छा गया. दोनों साहित्य की एक धारा को पढ़ कर उसे ओर गहराई से समझने का मौका मिलता है. 


लेकिन इसका एक बुरा प्रभाव जो मुझ पर पड़ा है वह यह है की में अपने आपको दो संसार में खोया हुआ पाती हूँ . एक अजीब से द्वंद्व में हूँ. एक ही समय दो विचार आते हैं - दोनों अलग - एक इंग्लिश में तो दूसरा हिंदी में :) अजीब सा मिलन है. हिंदी वाले अंग्रेजी से खफा , अंग्रेजी वाले हिंदी को तवज्जो नहीं देते... ओर में? में बीच में त्रिशंकु बनी हुई लटक रही हूँ. में गलती से लेखीका हूँ दोनों ही भाषाओं की . एक कविता हिंदी में तो उसी समय दूसरी इंग्लिश में बन जाती है. पर में दोनों से ही बराबर प्यार करती हूँ इसीलिए दुविधा ओर भी बढ़ जाती है. कभी एक विचार आता है तो मन सोचता  है - हिंदी में लिखू ? या इंग्लिश में? फिर मना की इंग्लिश में लिखा तो मन करता है इसी को काश हिंदी में लिखती . फिर एक दिल कहता है चलो कोई बात नहीं अब इसे अनुवाद कर लेना.... पर में ओर मेरा आलस ! 


इच्छा है की अंग्रेजी ओर हिंदी की सभी विधाओं में कुछ न कच लिखू. ओर साथ में कभी अनुवाद भी करू - अगर अपनी ही कोई रचना कर सकी तोह बहुत ख़ुशी होगी. ओर अंत में आशा है की मेरा द्वंद्व समाप्त हो , ओर दो  साहित्य की इन दो राहो से अपनी एक नयी राह खोज सकू. 



Comments

  1. तुम्हारे कमेंट्स पढ़े सौम्या, कम उम्र होने के बावजूद तुम्हारी मानसिक उम्र शायद दूसरों से बहुत आगे है , तुमने अपने दो कमेंट्स से अपना एक प्रभाव छोड़ने में सफल रही हो ! दूसरों से बहुत अलग हो , तुम जीवन में नए आयाम बनाओगी ....
    कभी कभी आती रहना , शुभकामनायें !

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  2. Sateesh ji ! mein aapke blog per likhne hi waali thi ki mujhey aapka aashirwaard chahiye... aur yahan aapne snehvash de diya... aapka aashirwaad sada raha to shayad zarur kuch kar paau apni life me. :)

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  3. आप सौभाग्यशाली है .....की आपकी रूचि दोनों भाषाओँ में बराबर है ....भावनाओ को व्यक्त करने के लिए शब्द की ज़रूरत होती है मायने ये नहीं रखता की आप किस भाषा में व्यक्त कर रही है ......ऐसा मैं मानता हूँ ......और बात रही हिंदी - अंग्रेजी की खीचा तानी का ......तो आप खुद वाकिफ है की आज भारत देश में हिंदी का क्या हश्र हो रहा है .......मैं तो ये मानता हूँ अंग्रेजी को खूब प्यार करना चाहिय ......लेकिन इस प्यार में अपनी मात्र भाषा को नहीं भूलना चाहिए .

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  4. @devesh ji - aapki baat bilkul sahi hai... mummy bhi kehti hai ki mein bahut bhaagyashaali hoon jo do bhaashayien padh rahi hoon.
    mein is baat se bhi sehmat hoon ki hame angrezi bhaasha aane ka ghamand na ho ki hum har jagah (apne ghar mein bhi ) angrezi bhaasha ka prayog kare. hindi ki apni vishisht jagah hai... aur uski aabha aur gourav english se kahin jyada hai... !!!

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  5. द्वंद्व तो बना ही रहेगा पर आप सौभाग्यशाली हैं कि दो भाषाओं को गहराई से अध्ययन किया है..
    लेख या कविता तो किसी भी भाषा में हो, मन की बात श्रोताओं, पाठकों तक पहुंचनी ज़रूरी है.. मैं तो यही मानता हूँ..

    नोट - कुछ जगह मात्राओं में दुविधा नज़र आती है जैसे 'मैं' को 'में' लिखा गया है..
    क्या आपको इंडिक के इस्तेमाल में कोई परेशानी हो रही है..

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  6. @Pratik - aapne bilkuli thik kaha... :)
    nahi pareshaani nahi hai... mein hi kabhi kabhi aise galtiyon ko ignore kar deti hoon ... thodi aalsi hoon... per aage se dhyaan rakhungi :)

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