तनहा सफ़र में रात के तारे
जब भी रात के सफ़र में होती हूँ कुछ पंक्तियाँ बन ही जाती हैं... अभी जब में अपने घर से जयपुर आई तो तारो भरी रात को देख कर ये पंक्तियाँ दिल में उतर गयी जिन्हें मैंने अपने मोबाइल में सेव कर लिया था ---
काली चुनरी में जड़े हुए हीरे से लगे
मुझको ये रात के तारे
रात भर बैठी गिनती रही
क्यूंकि जानती हूँ कटता नहीं ये तनहा सफ़र यूँही
एक तारे से दुसरे तारे के बीच सपनो के जाल बुनती रही
क्यूंकि जानती हूँ सपनो के बूते भी जी जा सकती है एक लम्बी उम्र .

मुझको ये रात के तारे
रात भर बैठी गिनती रही
क्यूंकि जानती हूँ कटता नहीं ये तनहा सफ़र यूँही
एक तारे से दुसरे तारे के बीच सपनो के जाल बुनती रही
क्यूंकि जानती हूँ सपनो के बूते भी जी जा सकती है एक लम्बी उम्र .
वाह !!.....बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ से सजया है आपने ये कविता
ReplyDeletethank u devesh ji :)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द दिल को छू गये ।
ReplyDeletethank you sanjay ji :)
ReplyDeleteअसल जिंदगी में जब जीना दुभर हो जाता है
ReplyDeleteतो सपनो में ही जीए जाने का ख्याल आता है
सच्चाई को काफी करीब से देख ले गर कोई
उसकी हर बात कविता,हर ख्याल शेर बन ही जाता है....
आपकी पंक्तिया सच्चाई के बहुत करीब लगी जी
कुंवर जी,
thank u kunwarji ...
ReplyDeletesapno mein jiya tab bhi jaata hai jab zindagi bahut hi asaan aur zameen per ho aur aapke khwab aasmaan ke hoon... :)
awesome last line.
ReplyDelete(and Gogh wld hav liked it too :))
thank u mohit :) ... Got a new thing to search upon...!!!
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