सिल लिए हैं मैंने होंठ अपने अब
मेरे शब्दों को तुम पसंद नहीं,
और तुम्हे मेरे शब्द.
सिल लिए हैं मैंने होंठ अपने अब.
चुप रहते रहते सारे,
कहीं खो गए हैं शब्द,
सिल लिए हैं मैंने होंठ अपने अब.
दीवारे ताकती हैं मुझे ,
तकिये पर टपकते हैं शब्द,
सिल लिए हैं मैंने होंठ अपने अब.
चुप रहते खो गए सारे शब्द ...
ReplyDeleteइतना चुप भी ना रहो कि खो जाएँ सारे शब्द ...
इतना मुखर भी नहीं कि ख़त्म हो जाएँ सारे शब्द ...
तकिये पर बिखरे शब्द उठाये तो ये कविता बन ही गयी ..
और बनती रहे ..
शुभकामनायें ...!
shabd bhi ajib hain
ReplyDeletekabhi khilte juba par
to kabhi bandish hain
armano me .........
par ek sach inka
ye badal dete halaat
aur na kuch ho
ye dete hain saath.....
वाणी गीत से सहमत हूँ , संवादहीनता की स्थिति वास्तविकता से दूर ले जायेगी ...लिखती रहें !
ReplyDeleteशुभकामनायें