बहुत कोशिश कि
बहुत कोशिश कि
खोला करूँ शाम को खिड़कियाँ
क्यूंकि सूरज कभी डूबता नहीं
एक परछाई बनी रहूँ
क्यूंकि साए कभी कुछ कहते नहीं
वो लकीरें मिटा दूं
तुम्हारे चेहरे से जो तुम्हारी नहीं ,और मेरी नहीं
ओर वो तारे भी
जो कभी सपने बन गए थे हमारी आँखों के

खोला करूँ शाम को खिड़कियाँ
क्यूंकि सूरज कभी डूबता नहीं
एक परछाई बनी रहूँ
क्यूंकि साए कभी कुछ कहते नहीं
वो लकीरें मिटा दूं
तुम्हारे चेहरे से जो तुम्हारी नहीं ,और मेरी नहीं
ओर वो तारे भी
जो कभी सपने बन गए थे हमारी आँखों के
nicce!!!
ReplyDeleteThank you :))
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