बाणभट्ट कि आत्मकथा - महामाया
महामाया - "पुरुष वस्तु-विछिन भाव रूप सत्य में आनंद प्राप्त करता है, स्त्री वस्तु-परिगृहीत रूप में रस पाती है. पुरुष निःसंग है , स्त्री आसक्त, पुरुष निर्द्वंद्व है, स्त्री द्वन्द्वोमुखी , पुरुष मुक्त है स्त्री बद्ध. पुरुष स्त्री को शक्ति समझ कर ही पूर्ण हो सकता है, पर स्त्री , स्त्री को शक्ति समझ कर अधूरी रह जाती है. ...
तू क्या अपने को पुरुष और मुझे स्त्री समझ रहा है? मुझमे पुरुष कि अपेक्षा प्रकृति कि अभिव्यक्ति कि मात्र अधिक है , इसीलिए मैं स्त्री हूँ. तुझमे पृकृति कि अपेक्षा पुरुष कि अभिव्यक्ति अधिक है , इसीलिए तू पुरुष है. "
"...परम शिव से दो तत्त्व एक ही साथ प्रकट हुए थे - शिव और शक्ति. शिव विधिरूप है और शक्ति निषेधरूपा. इन्ही दोनों तत्वों के प्रस्पंद-विस्पंद से यह संसार आभासित हो रहा है. पिंड में शिव का प्राधान्य ही पुरुष है और शक्ति का प्राधान्य नारी है. ... जहाँ कहीं अपने आप को उत्सर्ग करने कि, अपने-आपको खपा देने कि भावना प्रधान है वहीँ नारी है. जहाँ कहीं दुःख सुख कि लाख लाख धाराओं में अपने को दलित द्राक्षा के समान निचोड़ कर दूसरे को तृप्त करने कि भावना प्रबल है , वहीँ 'नारी-तत्त्व' है. नारी निःशेधरूपा है. वह आनंद भोग के लिए नहीं आती, आनंद लुटाने के लिए आती है. आज के धर्म-कर्म के आयोजन, सेन्य संगठन और राज्य विस्तार विधि रूप हैं, उनमे अपने आपको दूसरों के लिए गला देने कि भावना नहीं है इसीलिए वे एक कटाक्ष पर ढह जाते हैं , एक स्मित पर बिक जाते हैं. वे फेन बुदबुद कि भांति अनित्य हैं. ... " (बाणभट्ट कि आत्मकथा)
ahha...Glorious and amazing words
ReplyDeleteIndeed !! :)
ReplyDeleteAmazing!! Well crafted!!
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