मेरे देवता !
मेरे देवता !
दिनभर की खिट -पिट , झगडा जंजाल
एक ही ले पर चलती रेलगाड़ी सी ज़िन्दगी
बिसरने पर और बिसरता जा रहा समय
घडी की टिक-टिक, एक काम दूसरा काम
हज़ारों विचार, लाखों प्रश्न, करोड़ों ख्वाब
और ख्वार होती ज़िन्दगी
सुनी बालकनी से सड़कों पर चलती जिंदगियों को
ताकती आँखे
कभी तो खत्म होना है ये , या
कभी नहीं ? सपनो में कोई सार नहीं !
पर जब तब आँखों में तैर आता है एक द्रश्य -
लाल चुनर और सिंदूरी मांग
और तभी जाग उठते हैं वो संस्कार , वो सपने -
की मेरा सर झुके जिन चरणों में ,
वो पूज्य हों !
वो ... मेरे देवता हों !
Ati uttam
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