रोज़ एक दिन गुजर जाता है

सुबह की चाय से लेकर
रात के खाने की नखरा-नुकुर  तक
रोज़ एक दिन गुज़र जाता है

झाड़ - झटकार से लेकर
सबकी जरूरतों का ख्याल रखने तक
रोज़ एक दिन गुज़र जाता है

न आकाश देखने की फुर्सत
न चाँद निहारने की
पाखाने से लेकर रसोईघर तक
रोज़ एक दिन गुजर जाता है

दिन कहाँ उगता है
रात कहाँ सरक जाती है
बुज़ुर्गों की डाँट से लेकर
बच्चों की फटकार सुनने तक
रोज़ एक दिन गुजर जाता है

दिन महीने साल गुज़रते
वक्त नहीं लगता
जहाँ मन तक नहीं लगता था
वहीँ पूरा जीवन लग जाता है
रोज़ ... बस ! एक दिन गुजर जाता है




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