प्रेम

रात आधी
मैंने बितायी
तारों को छूते हुए
और तुम्हारे न होने पर भी
तुम्हारी खुशबू को
हौले से अपने भीतर
महसूस करते हुए

यह महज़ मेरे स्त्री
और तुम्हारे पुरुष होने का
सम्मोहन नहीं है
यह एक अनुभूति है
प्रेम से भीगी हुई
उन सपनों के लिए
जो मेरे अपने थे
और कभी-कभी
व्यक्ति से अधिक
हम अपने ही
सपनों से प्रेम करने लगते हैं।  

Comments

Popular posts from this blog

मृत्युंजय - एक चरित्र, अनंत कहानी

गदल - रांगेय राघव

अन्या से अनन्या