महामाया - "पुरुष वस्तु-विछिन भाव रूप सत्य में आनंद प्राप्त करता है, स्त्री वस्तु-परिगृहीत रूप में रस पाती है. पुरुष निःसंग है , स्त्री आसक्त, पुरुष निर्द्वंद्व है, स्त्री द्वन्द्वोमुखी , पुरुष मुक्त है स्त्री बद्ध. पुरुष स्त्री को शक्ति समझ कर ही पूर्ण हो सकता है, पर स्त्री , स्त्री को शक्ति समझ कर अधूरी रह जाती है. ... तू क्या अपने को पुरुष और मुझे स्त्री समझ रहा है? मुझमे पुरुष कि अपेक्षा प्रकृति कि अभिव्यक्ति कि मात्र अधिक है , इसीलिए मैं स्त्री हूँ. तुझमे पृकृति कि अपेक्षा पुरुष कि अभिव्यक्ति अधिक है , इसीलिए तू पुरुष है. " "...परम शिव से दो तत्त्व एक ही साथ प्रकट हुए थे - शिव और शक्ति. शिव विधिरूप है और शक्ति निषेधरूपा. इन्ही दोनों तत्वों के प्रस्पंद-विस्पंद से यह संसार आभासित हो रहा है. पिंड में शिव का प्राधान्य ही पुरुष है और शक्ति का प्राधान्य नारी है. ... जहाँ कहीं अपने आप को उत्सर्ग करने कि, अपने-आपको खपा देने कि भावना प्रधान है वहीँ नारी है. जहाँ कहीं दुःख सुख कि लाख लाख धाराओं में अपने को दलित द्राक्षा के समान निचोड़ कर दूसरे को तृप्त करने कि भावना...
kaash...aatma phenki jaa saktee.
ReplyDeletekaash ! ye kaash har baar saamne aakar khada nahi ho jata :)
ReplyDeletedont..kyunki daag ache hote hai :)
ReplyDeleteaur kya pasand nahi hai insaan hona?insaanon mein hi daag hote hai
aadmi hoon apni khamiyaan pasand karta hoon
roz isliya galtiyan chand karta hoon
bahut khonsurat!!! :)
ReplyDeleteInsaan hona bura nahii but sochti hoon kaash angel hoti... is daag bhari zindagi se door... :)