मृत्युंजय - एक चरित्र, अनंत कहानी
कर्ण ! अब ये मेरे लिए एक नाम या महाभारत का एक चरित्र मात्र नहीं रह गया है। आज मृत्युंजय उपन्यास पूरा हुआ। किसी भी कार्य के शुरू होने से उसके पुरे होने की भी एक कहानी होती है। लेकिन आज वह नहीं। यूँ तो विचारों के कई बुलबुले जैसे कई दिशाओं में फेल गए हैं , लेकिन मैं मात्र एक को लेकर चलूंगी। अब , आखिर, अब भटकना उचित नहीं। पांच पांडव या कर्ण - इनमे से कौन श्रेष्ठ है? ये सवाल नहीं, ये विचारों का जाल है। श्रेष्ठता को सिद्ध करना इतना आसान नहीं और वो करने वाली मैं कुछ भी नहीं - - - लेकिन - - - कर्ण श्रेष्ठ है--- और अगर है तो उसकी श्रेष्ठता का कारण क्या है - - - कर्ण का जीवन भयंकर संघर्षमय रहा और यह उपन्यास शत-प्रतिशत उसके संघर्षों को प्रकट करने में सफल रहा है। कर्ण की श्रेष्ठता के कुछ बिंदु जग-जाहिर हैं -वह महा-पराक्रमी , महावीर, अर्जुन से भी कुशल योद्धा था, उसकी ख्याति दिग्विजय कर्ण की जगह दान-वीर कर्ण के कारन हुई, लेकिन इससे भी श्रेष्ठ गुणों से वह युक्त वीर था - वह था - स्थिर बुद्धि, वचन-बद्धता। इसे ही कृष्ण ने आदर्शवादिता कहा है और इसीलिए उन्होंने कर्ण की जगह पांच पांडव को
भावनाओं की बौछार ....
ReplyDeletewaah, sach me poora sagar hi udel diya hai chand sabdo me aapne ...behtreen rachna .aabhar
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