बासी - पुरानी
रंगों में डूबी जिंदगानी है
खुशियाँ आनी खुशियाँ जानी हैं
सोचती हूँ ठहर ही जाऊ
जब रुकी मेरी कहानी है
जाने फिर कब अवकाश मिलेगा
वो मुझे मेरे पास मिलेगा
.......
शाम ढलती जाती है
अकेली नही ढलती
मेरी परछाइयों को भी ले जाती है
और दे जाती है घुटन भरी तन्हाई
जिसे में अपने साथ लिए घुमती हूँ ....
खुशियाँ आनी खुशियाँ जानी हैं
सोचती हूँ ठहर ही जाऊ
जब रुकी मेरी कहानी है
जाने फिर कब अवकाश मिलेगा
वो मुझे मेरे पास मिलेगा
.......
शाम ढलती जाती है
अकेली नही ढलती
मेरी परछाइयों को भी ले जाती है
और दे जाती है घुटन भरी तन्हाई
जिसे में अपने साथ लिए घुमती हूँ ....
शाम ढलती जाती है
ReplyDeleteअकेली नही ढलती
मेरी परछाइयों को भी ले जाती है
Awesome lines!!!
aap jo likhtey hain uske aage toh kuch bhi nahi hain :) bas ek prayas hai.
ReplyDeleteI beg to differ here, I disagree... you are an amazing writer with strong hold on yer pen..may it be Hindi or English
ReplyDeleteIm just a writer by coincidence ...
ReplyDeleteYou are a writer by talent :)
well... no fights but seriously you write superb poetry.
हे राम...दोनों अच्छे हैं यार.
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