रह रह कर आम की सौंधी महक
मुझे सुहाती है
जून के महीने में लबालब आम से भरे ओठों 
की याद दिलाती है 


वो पापा से जिद्द कर कर
आम की पेटियां मंगाना
वो माँ से लड़ कर भी
आम पर आम खूब खाना


रोना खूब बिलखना
आम का मौसम गुज़र जाने पर
दिन -ब-दिन महीने - दर- महीने
यूँही बिता देना इसके फिर आने तक


आज जब एक पल के लिए
समय ठहरा सा लग रहा है
आम की सौंधी महक
फिर भी मुझे अकेला नहीं छोडती 


बच्ची-सी है ये
कहीं न कहीं से आ जाती है मेरा प्यार पाने
या शायद थोड़ी बड़ी हो गयी है,
जो आती है मेरा साथ निभाने. 

Comments

  1. आम का सवाद और बचपन की यादों को शब्दों का रूप दे दिया ........वाह...बहुत प्यारी कविता .......

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  2. @vicharo ka darpan - aam ka swaad bachpan ka abhinna ang lagta hai... :)
    @Parul - Thank u Parul

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  3. ओजसी.. बहुत ही बढ़िया रचना है.. आम किसे पसंद नहीं होते.. मेरा तो सबसे पसंदीदा फल आम ही है.. वाह बचपन याद दिला दिया आपने.. सुंदर

    ज़रूर पढ़िये..
    मेरी जुगाड़ यात्रा...
    http://abyazk.blogspot.com/

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  4. @abyaz - Thank u comment ke liye n apna link dene ke liye.. padhkar bahut achha laga :)

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  5. दों को शब्दों का रूप दे दिया ........वाह...बहुत प्यारी कविता .......

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