रैक्व और जबाला
रिक्व ऋषि के पुत्र महान तपस्वी रैक्व अपने जीवन में किसी स्त्री से नहीं मिले थे। उन्हें ज्ञान ही नहीं था की स्त्री पदार्थ कैसा दीखता है और उससे कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। आंधी तूफ़ान की कृपास्वरूप उनकी भेंट होती है राजा जानश्रुति की एकमात्र सुंदरी कन्या जबाला से। जबाला को देखकर वे उसे देवपुरुष समझते हैं क्यूंकि देवपुरुष का ही चेहरा इतना दिव्य, चिकना, बाल रेशम की तरह मुलायम और आँखे मृग की तरह हो सकती हैं। किन्तु जबाला उन्हें बताती हैंकि वे स्त्री हैं और रिक्व को उनसे लोक- सम्मत व्यवहार करना चाहिए। रैक्व जबाला से मोहित हो जाते हैं और जबाला के जाने के पश्चात हमेशा के लिए उनकी पीठ में सनसनाहट रह जाती है। यह कहानी है हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के उपन्यास "अनामदास का पोथा " की। जिसमें कि सिर्फ रैक्व ऋषि का प्रसंग ही उपनिषद में प्राप्त ही बाकी पूरी कथा लेखक की कल्पना का चमत्कार है। दरअसल , कहानी में रैक्व की पीठ में सनसनाहट एक अजीब रहस्य है। जो मुझे तब समझ आया जब मैं पति से दूर मायके आई और २ दिन के बाद पति की गर्दन में मोच आ गयी। ...
हाँ जी.. शहर से दिल लगा के लोग समझते हैं की "अपना" शहर है..
ReplyDeleteऔर शहर ऐसी सोच पर खड़ा-खड़ा हँसता है कि मैं तो केवल कब्रों का ही शहर हूँ और एक दिन तुम भी उस कब्र के हिस्से हो जाओगे.. मेरे नहीं..
लाजवाब ......प्रस्तुति
ReplyDeletethank you :)
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