गोदान - एक विचार

आज फिर से गोदान पढ़ा।  पढ़ना था परीक्षा की तैयारी के लिए।  मतलब , जो ख़ास तथ्य ,चरित्र इत्यादि हैं उन्हें रट  लो , किन्तु मन जो कथा में उलझता गया , परीक्षा का ख्याल ही भूल गयी।  और अंत.... एक घुटी रुलायी ... आख़िर यह उपन्यास है या  निचोड़ , और वह भी ऐसा कि जिसमे जीवन का हर वो रस घुला है जो कम से कम भारत का हर व्यक्ति महसूस कर सकता है।

आज गोदान पढ़ कर लगा, इसके  हर भाग , हर संवाद , हर सूक्ति पर कई-कई  शोध लेख लिखे जा सकते हैं। शोध लेख तो फिर कभी , पर इस उपन्यास  का एक कथन  मैं आज आपके सामने रखना चाहती हूँ।

गोदान उपन्यास में प्रेमचंद ने शहरी जीवन के इतने रंग-बिरंगी और प्रामाणिक चित्र  उकेरे हैं कि हमें लगता है ये पात्र हमारे ही जीवन के अभिन्न अंग हैं।  ऐसे ही पात्रों में हैं - मि. मेहता , मिस मालती और गोविंदी देवी।  ये तीन ही  क्यों ? क्यूंकि असल में ये तीन ही पात्र हैं जो अपने जीवन में सच्चाई , सरलता और प्रकृति के निकट हैं या जाना चाहते हैं।  मि मेहता बहुत आदर्शवादी हैं , उनके विचार स्पष्ट और उच्च कोटि के हैं।  मिस मालती शुरू में चहकती फुदकती तितली - सी लगती है किन्तु धीरे धीरे मि मेहता के संपर्क से उसका चरित्र उज्जवल होता जाता है और अंत में वह मि मेहता के लिए एक प्रेरणा बन जाती है।  गोविंदी देवी के रूप में प्रेमचंद ने मि मेहता या यूँ कहना चाहिए की स्वयं के विचार अनुरूप  एक आदर्श नारी , स्त्री, पत्नी का चित्रांकन किया है।  और वह सिर्फ मूक या टाइप चित्रांकन नहीं है।  वह बहुत सजीव है।  उसका मनोविज्ञान रोचक है और उसके विचार उत्कृष्ट।  गोविंदी देवी प्रेमचंद के गोदान उपन्यास का ऐसा चरित्र है जो प्रेमचंद की सृष्टि होते हुए भी अपने में स्वतन्त्र हो गया है।  जिसके विचारों की व्याख्या प्रेमचंद भी नहीं कर सके हैं।


विमेंस लीग के एक कार्यक्रम में मि मेहता भाषण देते हुए स्त्रियों को पुरुषों से अति श्रेष्ठ बताते हैं। मि मेहता कहते हैं की , "मैं प्राणियों के विकास में स्त्री के पद को पुरुषों के पद से श्रेष्ठ समझता हूँ उसी तरह जैसी प्रेम और त्याग और श्रद्धा को हिंसा और संग्राम और कलह से श्रेष्ठ समझता हूँ।  अगर हमारी देवियाँ सृष्टि और पालन के देव-मंदिर से हिंसा और कलह के दानव - मंदिर में आना चाहती हैं तो उससे समाज का कल्याण न होगा। " आगे मेहता सेवा, समर्पण और त्याग के महत्त्व को उजागर करते हुए कहते हैं कि , "जहाँ सेवा का अभाव है, वही विवाह-विच्छेद है, परित्याग है, अविश्वास है। और आपके ऊपर,  पुरुष-जीवन की नौका की कर्णधार होने के कारण जिम्मेदारी ज्यादा है। आप चाहिए तो नौका को आंधी और तूफानों में पार लगा सकती हैं।  और आपने असावधानी की , तो नौका डूब जाएगी और उसके साथ आप भी डूब जाएँगी।  "

यह प्रेमचंद का आदर्शवाद है जो मि मेहता के मुख से बोल रहा है लेकिन इसके साथ ही एक गहन पारिवारिक यथार्थ भी गोविंदी देवी द्वारा रखा गया है। मि मेहता मिसेज गोविंदी देवी खन्ना से अपने भाषण के बारे में राय लेना चाहते हैं तब गोविंदी देवी कहती हैं , "पहली बात यह की भूल जाइये कि नारी श्रेष्ठ है और सारी जिम्मेदारी उसी पर है, श्रेष्ठ पुरुष है और उसी पर गृहस्थी का भार है. नारी में सेवा और संयम और कर्तव्य सबकुछ वही पैदा कर सकता है; अगर उसमे इन बातों का अभाव है तो नारी में भी अभाव रहेगा। नारियों में आज जो यह विद्रोह है, इसका कारण पुरुष का इन गुणों से शून्य हो जाना है।  " शायद ये अंतिम पंक्ति विमेन्स लीग का मूल-वाक्य (मूल प्रेरणा) कही जा सकती हैं।  लेकिन प्रेमचंद गोविंदी देवी के इस अति-यथार्थ विचार को विमर्श का विषय न बना पाये।  शायद मि मेहता के चरित्र या उनके आदर्शवाद को वे ठेस न पहुँचाना चाहते थे।

मेरे विचार में गोदान मात्र हिंदी-साहित्य की अमूल्य निधि नहीं है बल्कि हर भारतवासी के संघर्ष और संस्कृति की  गौरव गाथा है।  और सच कहूँ तो , यह उपन्यास सभी को जीवन में एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए।  बार - बार पढ़ने का मोह आप वैसे भी न त्याग पाएंगे !

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