योगी और भोगी

सहर और साशा कि आत्माएँ शायद एक दूसरे कि प्रतिबिम्ब थी . दोनों ही स्वच्छंद रूप से इस प्रथ्वी  पर भ्रमण करना चाहते थे. दोनों ने एक ही बिंदु से अपनी यात्रा कि शुरुआत कि थी. बिना शादी किये वे अकेले अलग अलग घूमते रहे. सहर के कई सम्बन्ध बने ... पर वह एक जगह कभी नहीं टिका ... एक जगह से दूसरी जगह घूमता रहा , सच कि तलाश में... धीरे धीरे लोग उसे योगी बुलाने लगे... उसका सम्मान करते .. उसे आसानी से अपना लेते... योगी का संसार भर में नाम हो गया... साशा भी उसी सच कि तलाश में भटकती रही... उसके भी कई संभंध बने ... वह भी एक जगह नहीं टिक पायी .. भटकती रही ... धीरे धीरे लोगो को उस पर संदेह होने लगा... उसका सम्मान घटता गया .. लोग उससे कटते गए.... लोग अब उसे भोगी बुलाने लगे... अब भी सहर ओर साशा में ज्यादा फर्क नहीं था ... वे एक ही आत्मा के दो प्रतिबिम्ब थे... एक योगी दूसरा भोगी....!!!

Comments

  1. मन-मस्तिष्क स्थिर से जान पड़ रहे है आपकी ये प्रस्तुति पढ़ कर!अद्भुत प्रस्तुति.....

    कुंवर जी,

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  2. हाँ या ना का अन्तर है भोगी और योगी में ।

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  3. maaf kijiyega praveen ji mein aapki baat ka arth nahi samjhi ...

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