शेखर एक जीवनी: जीवन अभी और भी बाकी है...
शेखर चलता रहा चलते चलते जब थक गया तो भी बैठा नहीं सिर्फ रुक गया पर चलने की प्रक्रिया को मन में दुहराता रहा चलना ज़रूरी हो गया था ... हो जाता है कभी कभी...
"इट्स डल टू थिंक अबाउट आईदीअलिजम" !
शारदा ! शान्ति ! शशि ! मन में कोई हंसा , क्या तुने सभी को अपने अंश के रूप में ही चित्रित किया? हाँ उससे परे मन देख भी कहाँ सका है? पर...
साहित्य ! साधना ! सेवा ! पुरुष होने का दंभ. कुछ है जो मैं समझ नहीं पा रही. कुछ है जो मैं समझना नहीं चाहती. सहानुभूति नहीं पैदा करना चाहती मन में शायद. शेखर इन सब से कुछ उपर है.
बेचने के लिए लिखा हुआ साहित्य नहीं. ये द्वंद्व ! ... वह इक्कीस साल का शेखर और... एक पोथा लिखा "हमारा समाज' , कितने में बिकेगा, दो रूपए. हूँ. और फिर दुनिया बदल जाती है. 'हमारा समाज' बिक जाता है. बेच दिया जाता है. समाज में कितना कुछ है जिसे बदलने की आग मन में धधकती है. पर यहाँ ... सबसे मन दूर चला जाता है.. निरे अन्धकार में...
एक बचकानी सी बात मन में आई है...शेखर के आगे की जीवनी लिखूं. या क्यूँ न शशि की ही एक जीवनी लिख डालूं कितना कुछ होगा शशि के मन में, हृदय में जो शेखर नहीं लिख पाया होगा... पर नहीं...अभी जीवनी या आत्म-कथा का समय नहीं... अभी मिटटी को और रोंदना बाकी है... जीवन अभी और भी बाकी है...
(अज्ञेय द्वारा लिखित, शेखर एक जीवनी से प्रेरित भाव)
Thanks a lot for sharing it :)
ReplyDeleteIts entirely my Pleasure :)
ReplyDeleteBahut Khoob!
ReplyDeleteThank you :)
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