तीन और त्रिवेनियाँ

- छोड़ दिया है अंधेरे की फिक्र करना मैंने
ऊँची ऊँची अट्टालिकाओं से अब आकाश जगमगाता है

अमावस्या भी अब तोह ईद का चाँद हो गई है

- सूखे पत्तों में दिन भर ढूंडा था
तेरी यादो को समेत कर ले जा रही थी

एक बार फिर उस हवा ने मेरा सब कुछ चीन लिया

-अकेले रहते रहते सब एहसास मर चुके थे
घर के कोने कोने से मिलकर लगा - में जिंदा हूँ

बहुत दिनों बाद किसी ने आज दिल दुखाया है

Comments

  1. उदास करती हैं ये पंक्तियां. दर्द के दस्तावेज।

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