तीन और त्रिवेनियाँ
- छोड़ दिया है अंधेरे की फिक्र करना मैंने
ऊँची ऊँची अट्टालिकाओं से अब आकाश जगमगाता है
अमावस्या भी अब तोह ईद का चाँद हो गई है
- सूखे पत्तों में दिन भर ढूंडा था
तेरी यादो को समेत कर ले जा रही थी
एक बार फिर उस हवा ने मेरा सब कुछ चीन लिया
-अकेले रहते रहते सब एहसास मर चुके थे
घर के कोने कोने से मिलकर लगा - में जिंदा हूँ
बहुत दिनों बाद किसी ने आज दिल दुखाया है
ऊँची ऊँची अट्टालिकाओं से अब आकाश जगमगाता है
अमावस्या भी अब तोह ईद का चाँद हो गई है
- सूखे पत्तों में दिन भर ढूंडा था
तेरी यादो को समेत कर ले जा रही थी
एक बार फिर उस हवा ने मेरा सब कुछ चीन लिया
-अकेले रहते रहते सब एहसास मर चुके थे
घर के कोने कोने से मिलकर लगा - में जिंदा हूँ
बहुत दिनों बाद किसी ने आज दिल दुखाया है
उदास करती हैं ये पंक्तियां. दर्द के दस्तावेज।
ReplyDeletebahut umda peshegi hain aapki :D
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