चार पंक्तियाँ

चाँद को देखती हूँ तो सोचती हूँ
क्या किस्मत उसने पायी है
खूबसूरती इतनी है मगर
दूर तलक फैली तन्हाई है

Comments

  1. बहुत खूब...चांद की ख़ूबसूरती और ग़म का कालापन.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

मृत्युंजय - एक चरित्र, अनंत कहानी

बाणभट्ट कि आत्मकथा - महामाया

गदल - रांगेय राघव