एक और लघु कथा

रिलेशनशिप
"तो फिर क्या आज से हम साथ है?" मयंक ने चैटिंग करते हुए संजना को मेसेज भेजा । संजना को ये पढ़कर बहुत अजीब लगा। उसे समझ में नही आया आख़िर ये क्या था - प्रपोसल या इन्फोर्मशन या फिर क्वेस्चन ? उसने मयंक से पुछा "वाट इस दिस? वाट दू यु मीन ?" मयंक ने तपाक से जवाब में लिख दिया - "ओपन रिलेशनशिप है न इसलिए ओपेंली प्रपोस कर दिया।"
संजना और मयंक दोनों ही शादी के बंधन तो क्या कमिटमेंट को भी नही स्वीकार करते थे। इसीलिए मयंक ने इस नए ट्रेंड को अपनाना ठीक समझा - ओपन रिलेशनशिप । जब तक जी चाहे साथ रहो , न चाहे छोड़ दो।
कितना आसान हो गया है सबकुछ। संजना को मयंक की बात एक हद तक ठीक भी लगी थी । कम से कम इसमें बॉय फ्रेंड की झक झक तो नही थी और पर्सनल स्पेस भी थी। पर .... फिर वो हाँ करने में झिझक क्यूँ रही थी। ऐसी क्या चीज़ थी जो उसे ऐसा करने से रोक रही थी ... शायद कोई ऐसा सच था जो संजना को ये गलती {?} करने से रोक रहा था।
संजना ने फिर अपने दिल को मनाना चाहा ... ख़ुद को उलहना दी ... यहाँ तक की ख़ुद को पिछड़ी मानसिकता का कहकर दुत्कारा भी पर फिर इस द्वंद्व के बीच सच की आवाज़ सुनाई दी - मयंक मुझे प्यार तो नही ही करता है पर शायद उतना पसंद भी नही करता ...उसकी लाइफ में मेरी क्या इम्पोर्टेंस है? में रहू या न रहू उसे क्या फरक पड़ेगा? और ... बस ... और कुछ नही । ये ओपन रिलेशनशिप में पड़कर में ख़ुद को और तकलीफ नही देना चाहती । पर ... में अकेली भी नही रहना चाहती । ओह! ये रिलेशंस .... हाउ टिपिकल दे आर । में ग़लत थी रिलेशनशिप इतने आसान नही होते । इंसान ख़ुद जितना जटिल होता है उसके रिलेशनशिप उतने जी जटिल होते हैं।
"तो फिर क्या आज से हम साथ है?" मयंक ने चैटिंग करते हुए संजना को मेसेज भेजा । संजना को ये पढ़कर बहुत अजीब लगा। उसे समझ में नही आया आख़िर ये क्या था - प्रपोसल या इन्फोर्मशन या फिर क्वेस्चन ? उसने मयंक से पुछा "वाट इस दिस? वाट दू यु मीन ?" मयंक ने तपाक से जवाब में लिख दिया - "ओपन रिलेशनशिप है न इसलिए ओपेंली प्रपोस कर दिया।"
संजना और मयंक दोनों ही शादी के बंधन तो क्या कमिटमेंट को भी नही स्वीकार करते थे। इसीलिए मयंक ने इस नए ट्रेंड को अपनाना ठीक समझा - ओपन रिलेशनशिप । जब तक जी चाहे साथ रहो , न चाहे छोड़ दो।
कितना आसान हो गया है सबकुछ। संजना को मयंक की बात एक हद तक ठीक भी लगी थी । कम से कम इसमें बॉय फ्रेंड की झक झक तो नही थी और पर्सनल स्पेस भी थी। पर .... फिर वो हाँ करने में झिझक क्यूँ रही थी। ऐसी क्या चीज़ थी जो उसे ऐसा करने से रोक रही थी ... शायद कोई ऐसा सच था जो संजना को ये गलती {?} करने से रोक रहा था।
संजना ने फिर अपने दिल को मनाना चाहा ... ख़ुद को उलहना दी ... यहाँ तक की ख़ुद को पिछड़ी मानसिकता का कहकर दुत्कारा भी पर फिर इस द्वंद्व के बीच सच की आवाज़ सुनाई दी - मयंक मुझे प्यार तो नही ही करता है पर शायद उतना पसंद भी नही करता ...उसकी लाइफ में मेरी क्या इम्पोर्टेंस है? में रहू या न रहू उसे क्या फरक पड़ेगा? और ... बस ... और कुछ नही । ये ओपन रिलेशनशिप में पड़कर में ख़ुद को और तकलीफ नही देना चाहती । पर ... में अकेली भी नही रहना चाहती । ओह! ये रिलेशंस .... हाउ टिपिकल दे आर । में ग़लत थी रिलेशनशिप इतने आसान नही होते । इंसान ख़ुद जितना जटिल होता है उसके रिलेशनशिप उतने जी जटिल होते हैं।
someone said its hard to maintain a healthy relationship than to climb mount everest :)
ReplyDeleteu wrote the message well....
रिश्ते उलझन लेकर आते हैं / कभी घुटन तो कभी जीवन लेकर आते हैं/ तनहाई ये देते हैं, फिर सावन लेकर आते हैं / कहीं ज़ुदाई तो कहीं अपनापन लेकर आते हैं...! संबंधों की अच्छी व्याख्या करती है आपकी लघुकथा...रिलेशनशिप. ऐसे ही लिखती रहें.
ReplyDeletebahut sunder panktiyan hain....
ReplyDeleteSome idiot somewhere sometime ago had said, "We have an expertese in complicating things." Don't we? :)
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