तीन त्रिवेनियाँ
तीन त्रिवेनियाँ
-उसके बालों से अब सफेदी टपकने लगी थी
आँख का चश्मा भी अब लुढ़कने लगा था
किसी ने कहा था "जवानी की यादों को टटोलने के दिन आ गए"
-काका के चेहरे की लकीरों में कितनी कहानियाँ छिपी हैं
उसकी ज़िन्दगी के कटोरे में अनुभव की चवन्नियां रखी हैं
मन करता है लिपट जाओं उन कन्धों से जिसने ज़िन्दगी के बोझ को यूँ बिना शिकायत उठाया
-साड़ी में पहले अस्त व्यस्त सी रहा करती थी
मिनी स्कर्ट में उसको अब शर्म नही लगती
शर्माना वैसे भी अब आउट ऑफ़ फैशन हो गया है
-उसके बालों से अब सफेदी टपकने लगी थी
आँख का चश्मा भी अब लुढ़कने लगा था
किसी ने कहा था "जवानी की यादों को टटोलने के दिन आ गए"
-काका के चेहरे की लकीरों में कितनी कहानियाँ छिपी हैं
उसकी ज़िन्दगी के कटोरे में अनुभव की चवन्नियां रखी हैं
मन करता है लिपट जाओं उन कन्धों से जिसने ज़िन्दगी के बोझ को यूँ बिना शिकायत उठाया
-साड़ी में पहले अस्त व्यस्त सी रहा करती थी
मिनी स्कर्ट में उसको अब शर्म नही लगती
शर्माना वैसे भी अब आउट ऑफ़ फैशन हो गया है
शर्माना वैसे भी अब आउट ऑफ़ फैशन हो गया है
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करारा व्यंग्य.
त्रिवेणियां सुंदर हैं.
he he nice one :)
ReplyDeletebut muskurana kabhi out of fashion nahin hoga :)