अतीत की देहलीज़ पर खड़ी ....

अतीत की देहलीज़ पर खड़ी
वह कुछ डरी सी
देख रही है अतीत के चलचित्रों में
अपनी ही परछाई ...
कोने में दुबक कर सोयी
रोई आज वह खूब रोई
देख कर माँ पिताजी का प्यार
अपने छोटे भाई के प्रति
दुत्कारा नही उसे
न ही उपेक्षा की उसकी
फिर भी जाने क्यूँ लगने लगा उसे
की कोई प्यार नही करता उसे

प्यार!
अतीत में प्यार की कमी सी थी
कमरे में अँधेरा था
तकिया उसके आंसुओं से गिला था
वह ख़ुद को चुप कराती
सर पर ख़ुद ही हाथ फेर
लोरियां सुनाती
खुश करने के लिए
ख़ुद को परियों की कहानियाँ सुनाती

अतीत की देहलीज़ पर खड़े
जब वह वर्त्तमान की और देखती है
तो समझ पाती है
क्यूँ वो लड़की
अभी तक बचपन की कहानियों में khoyi है
उन्ही कल्पना के जंगलों में भटक रही है
वह तो कभी बड़ी हुई ही नही थी
बल्कि समय ने उसे बाँध लिया है
और उस देहलीज़ पर खड़ा कर दिया है
जहाँ से वह न अतीत में पूर्णतः kho हो पाती है
न वर्त्तमान में जी पाती है ...

अतीत की देहलीज़ पर खड़ी...



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